पवन कहता शीश उठाकर
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर
मन मॅ गहराई लाओ।
पृथ्वी कहती धैर्य न छोडो
कितना ही हो सिर पर भारा
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लौ तुम सारा संसारा
समझ रहे हो क्या कहती है
उठ-उठ, गिरे गिरे तरल तरंग?
भर लो, भर लो, अपने मन
में मीठी-मीठी मृदुल उमंगा
सोहनलाल द्विवेदी।
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