प्रकृति का संदेश Poem.



पवन कहता शीश उठाकर 
तुम भी ऊँचे बन जाओ। 
सागर कहता है लहराकर 
मन मॅ गहराई लाओ। 

पृथ्वी कहती धैर्य न छोडो 
कितना ही हो सिर पर भारा 
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लौ तुम सारा संसारा 

समझ रहे हो क्या कहती है 
उठ-उठ, गिरे गिरे तरल तरंग? 
भर लो, भर लो, अपने मन 
में मीठी-मीठी मृदुल उमंगा

         सोहनलाल द्विवेदी

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