सन्धि (Joining)
'सन्धि' शब्द का अर्थ है-मेल। दो शब्दों के मिलने पर पहले शब्द का अन्तिम वर्ण और दूसरे शब्द का पहला
वर्ण आपस में मिल जाता है तथा एक नया रूप धारण कर लेता है। ध्वनियों के इस मेल के कारण हुए विकार
या परिवर्तन को व्याकरण में सन्धि कहते हैं। उदाहरणार्थ* शरणागत की रक्षा करना राजपूती आन है।
* बेंच पर नागरिकों से घिरे सज्जन विराजमान थे।
वर्ण आपस में मिल जाता है तथा एक नया रूप धारण कर लेता है। ध्वनियों के इस मेल के कारण हुए विकार
या परिवर्तन को व्याकरण में सन्धि कहते हैं। उदाहरणार्थ* शरणागत की रक्षा करना राजपूती आन है।
* बेंच पर नागरिकों से घिरे सज्जन विराजमान थे।
संन्यासी के मन से दुर्भावना जाती रही। पहले वाक्य में 'शरणागत' शब्द 'शरण । आगत' से बना है।
'शरण' के अन्त का 'अ' और 'आगत' के आरम्भ का 'आ' मिलकर 'आ' बन गया है। इसमें दो स्वरों (अ+ आ) के मिलने से सन्धि हुई है।
दूसरे वाक्य में 'सज्जन' शब्द 'सत् । जन' के योग से बना है। 'सत्' के अन्त का 'त्' और 'जन' के आरम्भ का 'ज'
मिलकर 'ज्ज' बना है। यहाँ दो व्यंजनों (त् । ज) में सन्धि हुई है। ___तीसरे वाक्य में 'दुर्भावना' शब्द (दुः ।
भावना) में 'दुः' में विसर्ग से पहले 'उ' स्वर है और ‘भावना' के आरम्भ में 'भा' वर्ण है।
अत: विसर्ग का 'र' होकर 'दुर्भावना' शब्द बना है। यहाँ विसर्ग की भा' के साथ सन्धि हुई है।
मिलकर 'ज्ज' बना है। यहाँ दो व्यंजनों (त् । ज) में सन्धि हुई है। ___तीसरे वाक्य में 'दुर्भावना' शब्द (दुः ।
भावना) में 'दुः' में विसर्ग से पहले 'उ' स्वर है और ‘भावना' के आरम्भ में 'भा' वर्ण है।
अत: विसर्ग का 'र' होकर 'दुर्भावना' शब्द बना है। यहाँ विसर्ग की भा' के साथ सन्धि हुई है।
सन्धि-विच्छेद–सन्धियुक्त शब्दों को अलग-अलग करने की प्रक्रिया को सन्धि विच्छेद कहते हैं।
इसमें सन्धियुक्त शब्द को फिर से सन्धि-पूर्व अवस्था में लाकर लिखा जाता है।
इसमें सन्धियुक्त शब्द को फिर से सन्धि-पूर्व अवस्था में लाकर लिखा जाता है।
उपर्युक्त तीनों पदों का सन्धि-विच्छेद इस प्रकार होगा शरणागत = शरण + आगत
सज्जन = सत् । जन
दुर्भावना = दु: + भावना
सन्धि के भेद
सन्धि तीन प्रकार की होती है--
1. स्वर सन्धि
स्वर सन्धि में दो स्वरों का मेल होता है। जैसे—परम । अर्थ = परमार्थ (अ -- अ = आ) यहाँ दो स्वरों (अ+ अ) का मेल हुआ है।
स्वर सन्धि के पाँच उपभेद हैं
(क) दीर्घ सन्धि
(क) दीर्घ सन्धि–जब ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आएँ तो इसके मेल से दीर्घ आ,
ई ऊ बन जाता है। स्वरों के इस मेल तथा मेल के कारण हुए परिवर्तन को दीर्घ सन्धि कहा जाता को
ई ऊ बन जाता है। स्वरों के इस मेल तथा मेल के कारण हुए परिवर्तन को दीर्घ सन्धि कहा जाता को
अ + अ = आ भाव । अर्थ = भावार्थ
सूर्य + अस्त = सूर्यास्त
अ + आ = आ रत्न । आकर = रत्नाकर
योग + आसन = योगासन
आ + अ = आ यथा + अर्थ = यथार्थ
रेखा + अंकित = रेखांकित
आ + आ = आ महा + आशय = महाशय
महा + आत्मा = महात्मा
इ + इ = ई रवि + इन्द्र = रवीन्द्र
मुनि + इन्द्र = मुनीन्द्र
कपि + ईश्वर = कपीश्वर
गिरि + ईश = गिरीश
ई + इ = ई शची + इन्द्र = शचीन्द्र
लक्ष्मी + इच्छा = लक्ष्मीच्छा
ई + ई = ई रजनी + ईश = रजनीश
उ+ उ = ऊ सु + उक्ति = सूक्ति
गुरु + पदेश = गुरूपदेश
उ + ऊ = ऊ लघु + ऊर्मि = लघूर्मि
ऊ + उ = ऊ वधू + उत्सव = वधूत्सव
ऊ + ऊ = ऊ वधू + ऊर्मि = वधूर्मि
(ख) गुण सन्धि
-जब अ, आ का इ, ई और उ, ऊ से मेल होता है तो इनके स्थान पर क्रमशः “ए' और
'ओ' हो जाता है। अ, आ का ऋ से मेल होने पर अर् हो जाता है। स्वरों का यह मेल
गुण सन्धि कहलाता है। जैसेअ + इ = ए नर + इन्द्र = नरेन्द्र
'ओ' हो जाता है। अ, आ का ऋ से मेल होने पर अर् हो जाता है। स्वरों का यह मेल
गुण सन्धि कहलाता है। जैसेअ + इ = ए नर + इन्द्र = नरेन्द्र
भारत + इन्दु = भारतेन्दु आ + इ = ए यथा + इष्ट = यथेष्ट
महा + इन्द्र = महेन्द्र गण + ईश = गणेश
एक + ईश्वर = एकेश्वर उमा + ईश = उमेश
राजा + ईश = राजेश सूर्य + उदय = सूर्योदय
पर + उपकार = परोपकार महा + उत्सव = महोत्सव गंगा + उदय = गंगोदय
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा + ऊ = ओ
गंगा + ऊर्मि = गंगोर्मि अ + ऋ = अर्
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि
(ग) वृद्धि सन्धि
यदि अ, आ के बाद ए-ऐ हो तो दोनों के मेल से 'ऐ' हो जाता है तथा यदि अ,
आ के बाद ओऔ हो तो दोनों के मेल से ‘औ' हो जाता है।
आ के बाद ओऔ हो तो दोनों के मेल से ‘औ' हो जाता है।
जैसे:अ + ए = ऐ
एक + एक = एकैक आ + ए = ऐ
सदा + एव = सदैव अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्य = मतैक्य आ + ऐ = ऐ
महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य अ + ओ = औ
दन्त + ओष्ठ = दन्तौष्ठ अ + औ = औ
वन + औषधि = वनौषधि
(घ) यण सन्धि
जब ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ के बाद इनसे भिन्न कोई स्वर आए तो, इ का य् , उ का व्
और ऋ कार हो जाता है। स्वरों के इस मेल को यण सन्धि कहा जाता है। जैसे:इ + अ = य्
और ऋ कार हो जाता है। स्वरों के इस मेल को यण सन्धि कहा जाता है। जैसे:इ + अ = य्
यदि + अपि = यद्यपि
इ + आ = या इति + आदि = इत्यादि
इ + उ = यु उपरि + उक्त = उपर्युक्त
इ + ऊ = यू वि + ऊह = व्यूह
इ + ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
इ + ए = ये प्रति + एक = प्रत्येक
देवी + ऐश्वर्य = देव्यैश्वर्य
नदी + अर्पण = नद्यर्पण
सखी + आगमन = सख्यागमन
नदी + ऊर्मि = नथूर्मि
उ + ए = वे अनु + एषण = अन्वेक्षण
ऊ + आ वधू + आगमन = वध्वागमन
ऋ + अ = र् पितृ + अनुमति = पित्रनुमति
ऋ + आ = रा मातृ + आज्ञा = मात्राज्ञा
ऋ + इ = रि मातृ + इच्छा = मात्रिच्छा
(ङ) अयादि सन्धि
जब ए-ऐ, ओ-औ के बाद इनमें भिन्न स्वर आ जाता है, तो इनके स्थान पर ए का अय्, ऐ
का आय, ओ का अव् और औ का आव् हो जाता है। स्वरों के इस प्रकार के मेल को
अयादि सन्धि कहते हैं। जैसेए + अ = अय् |
का आय, ओ का अव् और औ का आव् हो जाता है। स्वरों के इस प्रकार के मेल को
अयादि सन्धि कहते हैं। जैसेए + अ = अय् |
ने + अन = नयन
ऐ + अ = आय्
ऐ + इ = आयि गै + इका = गायिका
ओ + अ = अव् भो + अन = भवन
औ + अ = आव्
औ + इ = आवि नौ + इक = नाविक
औ + उ = आवु भौ + उक = भावुक
2. व्यंजन सन्धि
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3. विसर्ग सन्धि
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